यमुनोत्री
चार धाम यात्रा मे से पहला धाम है यह यमुना नदी का स्रोत और हिंदू धर्म में देवी यमुना का निवास स्थान है. यह जिला उत्तरकाशी में गढ़वाल हिमालय में 3,293 मीटर (10,804 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। उत्तराखंड के चार धाम तीर्थ यात्रा में यह चार स्थलों में से एक है। यमुना नदी के स्रोत यमुनोत्री का पवित्र गढ़, गढ़वाल हिमालय में पश्चिमीतम मंदिर है, जो बंदर पुंछ पर्वत की एक झुंड के ऊपर स्थित है। यमुनोत्री में मुख्य आकर्षण देवी यमुना के लिए समर्पित मंदिर और जानकीचट्टी (7 किमी दूर) में पवित्र तापीय झरना हैं।
पैदल मार्ग
जानकीचट्टी और खरसाली से यमुनोत्री धाम पहुंचने का एक ही पैदल मार्ग है। करीब छह किमी लंबा यह मार्ग बेहद संकरा है और इस पर जाम भी लगा रहता है। बीते दिनों में मार्ग पर यही स्थिति बनी रही और यात्रा धक्कों के बीच चली। संकरा होने के साथ यह मार्ग कई स्थानों पर भूस्खलन प्रभावित भी है।
पौराणिक महिमा
पुराणों के अनुसार कहा जाता है की सूर्य की छाया और संज्ञा नाम की दो पत्नियाँ थी जिनसे उन्हे यमुना,यम ,शनिदेव तथा वेवस्वत मनु प्राप्त हुए । इस प्रकार यमुना यमराज ओर शनिदेव की बहन है । यमुना सर्वप्रथम जलरूप से कलिंद पर्वत पर आयी , इसलिए इनका नाम कलिन्दी भी है सप्तऋषि कुंड, सप्त सरोवर कलिंदी पर्वत के ऊपर अवस्थित है । पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में प्रियतम पटरानी कालिंदी यमुना भी है ।यमुनोत्री धाम का इतिहास
यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिम क्षेत्र मे नदी स्रोत के पास 3,235 मीटर ( 10,614 फीट ) की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर का निर्माण अधिकतर भाग लकड़ी का था 1839 मे सुदर्शन शाह ने करवाया था जो टिहरी के सांस्कृतिक केंद्र के राजा थे । उसके यह मंदिर बाढ़ के कारण छतिग्रस्त हो गया था जिसके बाद मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया एवं टिहरी नरेश प्रताप शाह द्वारा 19 वीं सदी मे बनवाया गया था जो आज चार धाम यात्रा मे से एक है । पुराणों मे कहा गया है जो व्यक्ति यमुनोत्री धाम आकर यमुनाजी के पवित्र जल मे स्नान करते है तथा यमुनोत्री के सानिध्य खरशाली में शनिदेव का दर्शन करते है , उनके सभी कष्ट दूर हो जाते है। यमुनोत्री में सूर्यकुंड ,दिव्यशीला और विष्णु कुंड के स्पर्श ओर दर्शन मात्र से भक्तों के समस्त पाप मुक्त हो जाते है।भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है, यही देवी को प्रसाद के रूप मे चढ़ता है ओर अपने साथ ले जाते है ।
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